Lokgayika Sharda Sinha

 


बिहार की स्वर कोकिला शारदा सिन्हा: एक जीवंत दास्तान


जब भी बिहार के लोकगीतों की बात होती है, शारदा सिन्हा का नाम बरबस ही मन में आता है। उनकी आवाज़ जैसे हमें किसी गाँव की संकरी पगडंडी पर ले जाती है, जहाँ तालाब के किनारे पर किसी शादी में महिलाएं मिलकर लोकगीत गा रही हैं, या कोई त्योहार का दिन है और पूरा गाँव उस धुन में झूम उठा है। उनके गाए गीतों में बिहार की मिट्टी की सौंधी महक और वहां के लोगों की सादगी छलकती है। उनका संगीत, उनके बोल, उनके गीतों में बस एक अपनापन सा महसूस होता है, जो किसी भी श्रोता को अपने जड़ें महसूस करवा देता है। 


शारदा सिन्हा का जीवन: एक सादगी भरा सफर


शारदा सिन्हा का जन्म 1 अक्टूबर 1952 को बिहार के मुजफ्फरपुर में हुआ। एक साधारण परिवार में जन्मी शारदा जी के जीवन में बचपन से ही संगीत के प्रति एक अलग ही लगाव था। उनके घर में संगीत की कोई औपचारिक परंपरा नहीं थी, लेकिन लोकसंगीत की गूंजें हमेशा माहौल में रहती थीं। अपने परिवार में गाए जाने वाले गीतों से प्रभावित होकर उन्होंने भी धीरे-धीरे गायन शुरू किया। 


संगीत के प्रति उनके इस जुनून को देखकर उनके माता-पिता ने उन्हें संगीत की विधिवत शिक्षा दिलाई। शारदा जी ने बिहार विश्वविद्यालय से संगीत में मास्टर्स किया और उसके बाद शास्त्रीय संगीत का भी अभ्यास किया। उनके जीवन का हर कदम ऐसा था, जैसे वो अपने अंदर छिपे संगीत को पहचानने की कोशिश कर रही हों। एक साधारण परिवार से होते हुए भी, उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से संगीत की दुनिया में वो मुकाम हासिल किया जो किसी प्रेरणा से कम नहीं है।


शारदा सिन्हा के गीतों में बिहार की मिट्टी की महक


शारदा सिन्हा ने ऐसे समय में अपने करियर की शुरुआत की जब महिलाओं का संगीत के क्षेत्र में जाना बहुत चुनौतीपूर्ण था। लेकिन उन्होंने अपने बुलंद हौसलों के दम पर बिहार के पारंपरिक गीतों को अपनी आवाज़ दी। उनके गीत जैसे "कहे तोसे सजना", "सोनवा के पिंजरा", और "बोल बम" जैसे गीतों में उनकी आवाज़ की मिठास ने उन्हें बिहार की संस्कृति का पर्याय बना दिया। उनके गीतों में ग्रामीण जीवन की झलक, खेत-खलिहान की महक, और पर्व-त्योहारों की खुशी बसती है। उनके गीत सुनते ही ऐसा लगता है जैसे हम अपने गाँव की मिट्टी में वापस पहुँच गए हों।


उनके गाने छठ पूजा, होली, शादी-ब्याह, और अन्य त्योहारों पर पूरे धूमधाम से गाए जाते हैं। उन्होंने भोजपुरी, मैथिली, और मगही में गाए गीतों के ज़रिए एक ऐसी विरासत को संभाला है जो अब भी हर दिल में ज़िंदा है।


बॉलीवुड में भी शारदा सिन्हा का जादू


बॉलीवुड में अपनी पहचान बनाना किसी भी कलाकार के लिए बड़ी उपलब्धि मानी जाती है। शारदा सिन्हा ने भी इस मंच पर अपने लोकगीतों की अनूठी छाप छोड़ी है। उनकी आवाज़ में गाए गए गीत जैसे "हम आपके हैं कौन" का "दिल तो पागल है" और "गैंग्स ऑफ वासेपुर" में "कह के लूंगा" लोगों के दिलों में बस गए। बॉलीवुड में उनके गाए गीतों में भारतीय संस्कृति का एक गहरा रंग होता है। उनकी आवाज़ की वह विशेषता जो किसी भी गीत को लोकगीत बना देती है, वह बॉलीवुड में भी खूब सराही गई।


पुरस्कार और सम्मान: बिहार की बेटी का गौरव


शारदा सिन्हा को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। उन्हें 1991 में  पद्म श्री और 2018 में पद्म भूषण से नवाजा गया। यह पुरस्कार उनके उन अनमोल योगदानों का एक छोटा सा प्रतीक है जो उन्होंने भारतीय संगीत को दिए हैं। उन्होंने बिहार की संस्कृति और उसकी लोकधुनों को एक नई पहचान दी है। उनके गीतों ने भारतीय लोकसंगीत को एक ऐसा आयाम दिया है, जो आज भी हर किसी को अपनी माटी से जोड़े रखने में सहायक है।


बिहार की लोकधारा के प्रति उनका समर्पण


शारदा सिन्हा ने अपनी ज़िंदगी का हर लम्हा बिहार की संस्कृति और लोकसंगीत को संवारने में बिताया है। उनके गाने हर समारोह, त्योहार, और धार्मिक अनुष्ठान का हिस्सा बन गए हैं। जब उनके गीत गूंजते हैं, तो वो किसी को भी अपनी जड़ों से जोड़ लेते हैं। उनका संगीत सिखाता है कि हमारे रीति-रिवाज और हमारी संस्कृति की कितनी गहरी और सुंदर परतें हैं। 


नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा


शारदा सिन्हा केवल एक गायिका नहीं, बल्कि एक प्रेरणा भी हैं। उनकी जिद और समर्पण ने यह सिखाया कि कैसे कोई भी अपनी मेहनत और अपने जुनून से अपनी जगह बना सकता है। आज की पीढ़ी के लिए वह एक प्रेरणादायक उदाहरण हैं कि हमें अपनी मिट्टी, अपनी संस्कृति को कभी नहीं भूलना चाहिए। अपने गीतों के माध्यम से उन्होंने नई पीढ़ी को लोकसंगीत की महत्ता का एहसास करवाया है।


निष्कर्ष


शारदा सिन्हा की आवाज में वो मिठास है जो हर किसी के दिल को छू जाती है। उन्होंने अपने लोकगीतों से बिहार और पूरे उत्तर भारत को गर्वित किया है। उनकी गायकी में एक ऐसी सादगी है जो हमें अपनी परंपराओं और जड़ों के करीब लाती है। उनके गाए गीत हमें बार-बार यह एहसास कराते हैं कि हमें अपनी संस्कृति पर गर्व होना चाहिए। बिहार की इस अनमोल धरोहर को नमन है जो हमें हर बार अपनी माटी का स्वाद चखा देती हैं। शारदा सिन्हा का यह सफर हमेशा एक प्रेरणा की तरह रहेगा, जो हमें अपनी पहचान, अपनी संस्कृति और अपनी मिट्टी से जोड़े रखने की सीख देता है।


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