Nag panchmi kyo manate hai 2024/नाग पंचमी क्यों मनाते हैं । नाग पंचमी मनाने के पीछे क्या कहानी है। भूलकर भी नागपंचमी के दिन यह न करे।






नाग पंचमी क्यों मनाते हैं? नाग पंचमी मनाने के पीछे क्या कहानी है?




भारत के प्राचीन शास्त्रों और ग्रंथों में लगभग हर प्राणी की पूजा का प्रावधान है। चूहा,शेर, मोर, हाथी, भेड़, गाय, भैंस, बैल आदि किसी न किसी देवताओं के वाहन के रूप में ये हमें उनके साथ दिखाई देते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि मनुष्य हिंसक से हिंसक जानवर की हत्या न करें, उन पर दया का भाव रखे। इस प्रकार शिवजी भी सर्पों की माला गले में पहने हुए है। और उनके साथ हम नाग की भी पुजा करते है।


प्राचीन ग्रंथो में कहा जाता है कि इस पृथ्वी का भार पाताल लोक में निवास करने वाले शेषनाग के शीर्ष पर है। पुराण अनुसार सर्प दो प्रकार के होते हैं एक दिव्य और भौम। वासुकी और तक्षक नाग को दिव्य नाग कहा जाता है। जिसे पृथ्वी का बोझ उठाने वाला और अग्नि के समान तेजस्वी माना गया है कहा जाता है कि अगर इन्हें क्रोध आ जाए तो एक फुफकार से सारी सृष्टि हिल जाए।


मान्यता है कि सृष्टि रचयिता ब्रह्मा की चार पत्नियों थी जिनमें से पहली पत्नी से देवता, दूसरी पत्नी से गरुड़, और चौथी पत्नी से दैत्य उत्पन्न हुए। लेकिन उनकी तीसरी पत्नी का संबंध नागवंश से था अतः उनके गर्भ से नागों की उत्पत्ति हुई।


नाग पंचमी को मनाने के पीछे एक पौराणिक कथा है। कहते हैं कि महाभारत के युद्ध के पश्चात पांडवों ने अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को राज्य का भार सौंप दिया। और वे सभी स्वर्ग की यात्रा पर निकल गए थे। महाभारत के बाद धरती पर कलयुग का प्रारंभ हो चुका था। राजा परीक्षित की मृत्यु एक तक्षक नाग के डसने से हुई थी। परीक्षित का पुत्र जन्मजय जब बड़ा हुआ तो उसने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए पृथ्वी को नागविहीन करने की प्रतिज्ञा ली। जन्मजय ने एक नाग यज्ञ का आयोजन किया और उस यज्ञ में नागों की बलि देने लगा उसके आव्हान से सभी नाग यज्ञ की अग्नि में आकर भस्म होने लगे। जब यह बात आस्तिक मुनि को मालूम पड़ी, तो उन्होंने तुरंत आकर जन्मजय के क्रोध को शांत किया और समझाया। यज्ञ की अग्नि में दूध डालकर उस यज्ञ को ठंडा किया। इस प्रकार आस्तिक मुनि के कारण नागों की रक्षा हुई।

जिस दिन यह घटना घटी उस दिन सावन शुक्ल की पंचमी तिथि थी।
उसके बाद से ही इस दिन को नाग पंचमी के रूप में मनाया जाने लगा। यज्ञ की अग्नि में दूध डाला गया था, इसी वजह से ही नाग पंचमी पर नाग देवता को दूध चढ़ाने के लिए परंपरा शुरू हुई।




नाग पंचमी (Nag Panchmi) कब है?





हर वर्ष श्रावण मास की हरियाली अमावस के पश्चात पंचमी तिथि को नाग पंचमी मनाई जाती है। इस वर्ष पंचांग के अनुसार, नाग पंचमी की पूजा का शुभ मुहूर्त 9 अगस्त की सुबह 5 बजकर 46 बजे से शुरू होकर सुबह 8 बजकर 25 बजे तक रहेगा। इस दौरान नाग देवता (Nag Devta) की पूजा कर सकते हैं।


जिस जातक के जन्म कुंडली में कालसर्प दोष का योग हो, उसे नाग पंचमी की तिथि के दिन इस दोष का निवारण करने से अनुकूल फल की प्राप्ति होती है। यदि नाग पंचमी की तिथि को यह पूजा ना करवा सके तो माह के शुक्ल पक्ष की किसी भी पंचमी तिथि को नागों की पूजा कर काल सर्प दोष का निवारण करें।




नाग की पूजा कैसे की जाती है।






पहले नाग पंचमी के दिन सपेरे नाग लेकर घूमते थे और लोग नाग देवता की पूजा किया करते थे और उनका दूध अर्पण करते थे, किंतु अब नागों को पकड़ना प्रतिबंधित है। नाग लेकर घूमने वालों को दंड का प्रावधान है।


हमें इस दिन अनंत, वासुकी, शेषनाग, पद्य, कंबल, शंखपाल, कालिया, तक्षक आदि नागों का ध्यान करके शिवलिंग पर जो नाग की प्रतिमा होती है, उसकी पूजा करना चाहिए।


दूध, जल, बिल्वपत्र, चंदन, हल्दी, कंकू, एवं फूल आदि से शिवलिंग के उपर बैठे नाग की श्रद्धा भाव से पूजा करें।
धूप दीप जलाकर नवैध्य लगावे, नारियल चढ़ावे,आरती करे।


इस दिन नाग देवता की कथा सुने। दुध से शिवलिंग का अभिषेक कर पूजा अर्चना करने से भी हमें नाग देवता की पूजा का फल प्राप्त हो जाता है। क्योंकि शिव जी अपने गले में वासुकी नाग को एक आभूषण की तरह धारण किए है।

भुलकर भी नागपंचमी के दिन यह गलती न करें।

लेकिन ध्यान रहे नाग पर कभी चावल ना चढ़ाएं नाग देवता के दांत चावल के समान होते हैं, इसलिए नाग देवता पर व शिवलिंग पर भी केवल इस दिन चावल अर्पण नही करना चाहिए।  इस दिन चावल खाना भी नहीं चाहिए। पंचमी के दिन खड़े मसूर की दाल भी नहीं खाना चाहिए क्योंकि यह मसूर की दाल सर्प की आंख के जैसी होती है। इसलिए इस दिन इसे भी नही खाएं।  



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