झारखंड की राजनीति में चंपई सोरेन और हेमंत सोरेन नाम के मायने:
सभी जानते हैं कि झारखंड की राजनीति और झारखंड के आदिवासी समुदाय में इन दोनों का योगदान कितना महत्वपूर्ण है। दोनों ने अपने-अपने क्षेत्र में महत्वपूर्ण राजनीतिक योगदान दिया है। राज्य की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक संरचना को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस ब्लॉग में इन दोनों नेताओं के जीवन और उनके राजनीतिक सफर पर एक संक्षिप्त नजर डालेंगे।
हेमंत सोरेन एक युवा नेता:
हेमंत सोरेन झारखंड आंदोलन के प्रणेता शिबू सोरेन के पुत्र हैं, इनका जन्म 10 अगस्त 1975 को हुआ था। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने राजनीति में कदम रखा। वर्तमान में झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रमुख नेता है।
हेमंत सोरेन आज तीसरी बार झारखंड के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हैं। राजनीतिक विरोध और साजिशों के चलते हेमंत सोरेन 5 महीने की जेल की सजा काट कर बाहर आए हैं । जेल जाने से पूर्व उन्होंने त्यागपत्र देकर चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री पद सौप दिया था। 28 जून को झारखंड High Court के जज R. Mukhopadhyay ने अपने फैसले में कहा है कि ED के पास हेमंत सोरेन के विरुद्ध कोई साक्ष्य नहीं हैं। हेमंत सोरेन दोषी नजर नहीं आते।
इस प्रकार हेमंत सोरेन जमानत पर जेल से छूट गए है। और फिर एक बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे।
हेमंत सोरेन ने 2009 में अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की। उन्होंने दुमका विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। अपने पिता के साथ पार्टी को मजबूत बनाने का और संगठन का काम किया। 2013 में पहली बार मुख्यमंत्री बने। और 2019 में उन्होंने दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
जिस समय हेमंत सोरेन जेल में थे तब 2024 के आम चुनाव में उनकी पत्नी कल्पना सोरेन ने चुनाव प्रचार किया और झारखंड मुक्ति मोर्चा के संगठन को संभाला। उनके पति किस प्रकार राजनीति का शिकार हुए इस के बारे में लोगों को बताया। कई जनसभाएं की और पार्टी (झामुमो) का प्रचार किया।
चंपई सोरेन के संघर्ष और समर्पण की मिसाल:
चंपई सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा के एक प्रमुख नेता है। हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद उन्होंने मुख्यमंत्री पद को संभाला। उनका जन्म 14 फरवरी 1950 को हुआ था। वह झारखंड के आदिवासी समूह से आते हैं। वह अपने समुदाय के हक के लिए हमेशा संघर्ष करते रहे हैं। आदिवासियों के अधिकारों की आवाज उठाने और उनकी समस्या को सुलझाने के लिए चंपई सोरेन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। चंपई सोरेन का राजनीतिक सफर काफी लंबा और संघर्षमय रहा है। वह कई बार विधायक रहे हैं। झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामूमो) सरकार के कई विभागों मे मंत्री के रूप में काम भी कर चुके है । उनका संघर्ष, समर्पण और सेवा झारखंड के लोगों के लिए एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
लेकिन संघर्ष अभी बाकी है..
महाजन प्रथा और माफिया राज को खत्म करने के लिए बनी एक पार्टी जिसे आधा दशक हो चुका है, 50 साल पहले JMM झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक शिबू सोरेन ने 1973 में इसकी स्थापना की। शिबू सोरेन ने दो दशक तक पार्टी में काम किया । इन 50 साल में पार्टी कई बार टूटी और फिर बनी।
शिबू सोरेन में सनोत् समाज संस्था बनाकर महाजनों के खिलाफ संघर्ष किया ।और माफियाओं के खिलाफ संघर्ष करने वाले नेतृत्व AK Roy राय को भी पूरा समर्थन और बल दिया।
हालांकि झारखंड राज्य बनने के बावजूद भी झारखंड मुक्ति मोर्चा को ज्यादा राजनीतिक लाभ प्राप्त नहीं हुआ, क्योंकि सत्ता में कुछ वक्त के लिए आए और कभी बीजेपी और कभी कांग्रेस के साथ गठजोड़ करके सरकार चलानी पड़ी। पहली बार 2019 में झारखंड मुक्ति मोर्चा को बड़े कामयाबी मिली। और पार्टी ने 81 में से 30 सीटे जीत कर भाजपा को पीछे छोड़ दिया है। और राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बन गई है। अभी कांग्रेस और राजद के साथ मिलकर झारखंड में सरकार चल रही है। झारखंड मुक्ति मोर्चा को अभी बीजेपी से बहुत कड़ी राजनीतिक लड़ाई लड़नी पड़ रही है
क्योंकि भारतीय जनता पार्टी राज्य में पार्टी को तोड़ने की लगातार कोशिश कर सरकार गिराना चाह रही है, इसी कोशिश में पॉलिटिकल साजिश कर हेमंत सोरेन को फंसाया गया। देश की सबसे छोटी पार्टी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी से लड़ाई लड़ रही है। हेमंत सोरेन अभी तक तलवार की धार पर चलकर सरकार चला रहे हैं। हेमंत सोरेन अपनी सरकार और अपनी पार्टी को कितना आगे ले जा सकते हैं। पार्टी कब तक अकेले बहुमत ला पाती है हालाकि हेमंत सोरेन इतना तो समझ गए हैं कि यह अस्तित्व की लड़ाई है।