गुरु पूर्णिमा का पर्व 21 जुलाई 2024(रविवार) को मनाया जायेगा । हिंदी महीनों के नाम अनुसार यह आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन महर्षि वेद व्यास की पूजा होती है।
महर्षि वेद व्यास एक अलौकिक शक्ति
गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वरा गुरु साक्षात परम ब्रम्ह तस्मै श्री गुरुवे नमो नमः
महर्षि वेदव्यास के बारे में जाने बिना गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाना व्यर्थ है। आईए हम जानते हैं कि यह महान अलौकिक शक्ति के परिचायक महर्षि वेदव्यास कौन थे ? ऋषि पाराशर और सत्यवती के पुत्र और भगवान विष्णु के 18 वे अवतार माने जाते है । महर्षि वेदव्यास का जन्म त्रेता युग के अंत और द्वापर युग के प्रारंभ में हुआ था। वे पुरे द्वापर युग तक जीवित रहे द्वापर के अंत में उनका महाप्रयाण हुआ । महर्षि वेदव्यास ने अपने आसपास की घटनाओं को और पूरे महाभारत ग्रंथ की रचना की। वेदव्यास महाभारत के भीष्म के पिता राजा शांतनु और कौरव पांडव, इन सबके गुरु थे। महारानी सत्यवती के कहने पर महर्षि वेदव्यास ने नियोग विधि द्वारा उनकी विधवा बहू अंबा और अंबालिका को संताने प्रदान की। ताकि उनकी विरासत को वारिस मिल सके। ये तीन संतान धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर थे। महान ज्ञानी, अंतर्यामी और अपनी इच्छा मात्र से कहीं भी प्रकट होने वाले महर्षि वेदव्यास ने वेदों की रचना की। और इन्हें चार भागों में बांट दिया । 28 बार इनका संशोधन किया गया। भगवान शिव और पार्वती के पुत्र गणेश ने वेदों को लिपिबद्ध किया। महाभारत ग्रंथ की रचना भी महर्षि वेदव्यास द्वारा की गई, जो एक महान ग्रंथ बन गया । द्वापर के अंत में उन्होंने जगत कल्याण के लिए श्रीमद् भागवत ग्रंथ की रचना की । कलयुग प्रारंभ होने के पहले उनका और द्वापर युग की समाप्ति में उनका महाप्रयाण हुआ। ऐसे महान ऋषि जिनकी ग्रंथ युगों युगों तक अमर हो गई, गुरु पूर्णिमा के अवसर पर उन्हें कोटि कोटि प्रणाम है ।
गुरु पूर्णिमा आने से पहले देव देवताओं के चार मास के शयन का समय शुरू हो जाता है। देवशयनी ग्यारस (निर्जला एकादशी के महत्व को पढ़िए👇) के बाद आने वाली पूर्णिमा गुरु पूर्णिमा कहलाती है। हमारी संस्कृति में इतनी सुंदर व्यवस्था है कि देव सोने के बाद यह 4 महिने मनुष्य अपनी भक्ति, श्रद्धा और आध्यात्मिक शक्ति को बढ़ाने के लिए करता हैं । और इसकी पहली शुरुआत गुरु की पूजा (गुरु पूर्णिमा) से होती है। शास्त्र और पुराणों में गुरु की बहुत महिमा बताई गई है गुरु को भगवान से बड़ा माना गया है। सबसे पहले गुरु की पूजा भारतीय संस्कृति में की जाती है। गुरु से बड़ा कोई नहीं। कबीर का एक दोहा है "गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाय, बलिहारी गुरु आपकी, गोविन्द दियो बताए" यानी गुरु को भगवान से भी बड़ा माना गया है।
गुरु शब्द का अर्थ
गु का अर्थ है अंधकार और रू का अर्थ है प्रकाश अर्थात अंधकार को मिटाने वाला प्रकाश है गुरु।
असल में गुरु कौन है
गुरु हमें यह रास्ता बताता है कि हमारी मंजिल कहां है। गुरु का नाम लेते ही हमारे सामने प्राचीन समय में रहने वाले, सफेद बड़ी सी दाढ़ी वाले ऋषि मुनि की तस्वीर आ जाती है। जिनके सानिध्य में रहकर तपस्या करनी पड़ती है, या गुरुकुल में जाकर शिक्षा ग्रहण करनी होती है, वही गुरु होते हैं।
वर्तमान में हमें गुरु कहीं भी किसी भी क्षण मिल सकता है। बस हमें पहचानने की जरूरत है। गुरु की कोई वेशभूषा नहीं होती है, जिससे गुरु की पहचान हो सके। गुरु वह हर व्यक्ति है, जिससे आपको ज्ञान प्राप्त हो, कोई सलाह प्राप्त हो, किसी भी प्रकार का कोई संरक्षण प्राप्त हो, जिससे आपके जीवन को थोड़ा भी प्रकाश मिले। जिनके सरक्षण में हमें आंतरिक बल प्राप्त हो, मन में शांति हो, शक्ति व साहस मिलता हो, यह जिस भी व्यक्ति से हमें प्राप्त होता है वही हमारे जीवन में गुरु है।
चाहे हमारे पिता हो, माता हो, दोस्त हो, भाई हो, बहन हो अगर हमें उनसे कुछ भी ज्ञान प्राप्त होता है, उन्हें गुरु ही जानिए।
अगर हमें उनसे कुछ भी ज्ञान प्राप्त है और अगर हम उनके कहे अनुसार हम उन रास्तों पर चलते हैं, तो उनसे ज्यादा खुशी और किसी को नहीं प्राप्त करते हैं। सच्चे मित्र भी हमारे गुरु हो सकते हैं, क्योंकि वो हमें हमारी कमियों को बताते है। इसलिए संत कबीर ने कहा है... "निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय..बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय" हमारी निंदा करने वाले भी हमारे गुरु ही होते हैं क्योंकि वही हमारी कर्मियों को बताते हैं, जो हमारे समीप रहते हैं वही हमारी कमियां जानते भी हैं, इन्हें अपने समीप रखकर हम अपना सुधार कर सकते है।
गुरु दक्षिणा में हमें क्या देना चाहिए
सच्ची गुरु दक्षिणा गुरु के दिए हुए मार्गदर्शन पर चलना है। उनके बताए हुए रास्ते पर चलना और उन्नति करते जाना यही सच्ची गुरु दक्षिणा है। गुरु से ज्यादा हितेषी कोई और नहीं हो सकता, हमारी उन्नति और सफलता से सबसे ज्यादा खुशी केवल हमारे सच्चे गुरु को ही हो सकती है, यही खुशी देना ही गुरु दक्षिणा है।
यह तीन प्रकार के गुरु भी है,
1.समय
2.अध्यात्म
3.शिक्षा (ज्ञान)
कभी-कभी जीवन में समय भी हमारा गुरु बन जाता है। परिस्थिति और काल की घटनाएं हमें बहुत कुछ सिखाती है। कहते हैं समय बहुत बलवान होता है, समय हमें सिखाता है कि हमें कहां कैसे, क्या, करना है। कैसे व्यवहार करना है। समय की ठोकर से भी व्यक्ति अनुभव लेता है।
आध्यात्मिक उन्नति के लिए ध्यान तपस्या के लिए किसी श्रेष्ठ गुरु के मार्गदर्शन में हमें साधना करना चाहिए। कलयुग में गुरु की खोज भी एक बहुत बड़ी कला है क्योंकि वर्तमान में इतने पाखंडी बाबाओं के चंगुल में लोग फंसे हैं कि उन्हें यह समझ ही नहीं आता की असल में गुरु का क्या अर्थ है और गुरु कौन होता है। लोग अंधभक्ति में और अंध श्रद्धा में भेड़ चाल की तरह पाखंडी बाबो को गुरु बना लेते हैं । और फिर अपने निजी स्वार्थ लाभ हेतु उनके दिए उपाय और अर्थहीन कर्मकांड करते हैं।
असली में ज्ञान ही सबसे बड़ा गुरु है शिक्षा हमें जहां से भी जैसे भी प्राप्त हो अवश्य ग्रहण करना चाहिए। ज्ञान प्राप्त करने के बाद ही हम अपने जीवन में सत्य और सत्य की पहचान कर सकते हैं। शिक्षा के साथ लौकिक और व्यवहारिक ज्ञान की भी आवश्यकता होती है।
गुरु हमें यह रास्ता बताता है कि हमारी मंजिल कहां है। गुरु का नाम लेते ही हमारे सामने प्राचीन समय में रहने वाले, सफेद बड़ी सी दाढ़ी वाले ऋषि मुनि की तस्वीर आ जाती है। जिनके सानिध्य में रहकर तपस्या करनी पड़ती है, या गुरुकुल में जाकर शिक्षा ग्रहण करनी होती है, वही गुरु होते हैं।
वर्तमान में हमें गुरु कहीं भी किसी भी क्षण मिल सकता है। बस हमें पहचानने की जरूरत है। गुरु की कोई वेशभूषा नहीं होती है, जिससे गुरु की पहचान हो सके। गुरु वह हर व्यक्ति है, जिससे आपको ज्ञान प्राप्त हो, कोई सलाह प्राप्त हो, किसी भी प्रकार का कोई संरक्षण प्राप्त हो, जिससे आपके जीवन को थोड़ा भी प्रकाश मिले। जिनके सरक्षण में हमें आंतरिक बल प्राप्त हो, मन में शांति हो, शक्ति व साहस मिलता हो, यह जिस भी व्यक्ति से हमें प्राप्त होता है वही हमारे जीवन में गुरु है।
चाहे हमारे पिता हो, माता हो, दोस्त हो, भाई हो, बहन हो अगर हमें उनसे कुछ भी ज्ञान प्राप्त होता है, उन्हें गुरु ही जानिए।
अगर हमें उनसे कुछ भी ज्ञान प्राप्त है और अगर हम उनके कहे अनुसार हम उन रास्तों पर चलते हैं, तो उनसे ज्यादा खुशी और किसी को नहीं प्राप्त करते हैं। सच्चे मित्र भी हमारे गुरु हो सकते हैं, क्योंकि वो हमें हमारी कमियों को बताते है। इसलिए संत कबीर ने कहा है... "निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय..बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय" हमारी निंदा करने वाले भी हमारे गुरु ही होते हैं क्योंकि वही हमारी कर्मियों को बताते हैं, जो हमारे समीप रहते हैं वही हमारी कमियां जानते भी हैं, इन्हें अपने समीप रखकर हम अपना सुधार कर सकते है।
गुरु दक्षिणा में हमें क्या देना चाहिए
सच्ची गुरु दक्षिणा गुरु के दिए हुए मार्गदर्शन पर चलना है। उनके बताए हुए रास्ते पर चलना और उन्नति करते जाना यही सच्ची गुरु दक्षिणा है। गुरु से ज्यादा हितेषी कोई और नहीं हो सकता, हमारी उन्नति और सफलता से सबसे ज्यादा खुशी केवल हमारे सच्चे गुरु को ही हो सकती है, यही खुशी देना ही गुरु दक्षिणा है।
यह तीन प्रकार के गुरु भी है,
1.समय
2.अध्यात्म
3.शिक्षा (ज्ञान)
कभी-कभी जीवन में समय भी हमारा गुरु बन जाता है। परिस्थिति और काल की घटनाएं हमें बहुत कुछ सिखाती है। कहते हैं समय बहुत बलवान होता है, समय हमें सिखाता है कि हमें कहां कैसे, क्या, करना है। कैसे व्यवहार करना है। समय की ठोकर से भी व्यक्ति अनुभव लेता है।
आध्यात्मिक उन्नति के लिए ध्यान तपस्या के लिए किसी श्रेष्ठ गुरु के मार्गदर्शन में हमें साधना करना चाहिए। कलयुग में गुरु की खोज भी एक बहुत बड़ी कला है क्योंकि वर्तमान में इतने पाखंडी बाबाओं के चंगुल में लोग फंसे हैं कि उन्हें यह समझ ही नहीं आता की असल में गुरु का क्या अर्थ है और गुरु कौन होता है। लोग अंधभक्ति में और अंध श्रद्धा में भेड़ चाल की तरह पाखंडी बाबो को गुरु बना लेते हैं । और फिर अपने निजी स्वार्थ लाभ हेतु उनके दिए उपाय और अर्थहीन कर्मकांड करते हैं।
असली में ज्ञान ही सबसे बड़ा गुरु है शिक्षा हमें जहां से भी जैसे भी प्राप्त हो अवश्य ग्रहण करना चाहिए। ज्ञान प्राप्त करने के बाद ही हम अपने जीवन में सत्य और सत्य की पहचान कर सकते हैं। शिक्षा के साथ लौकिक और व्यवहारिक ज्ञान की भी आवश्यकता होती है।
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