2024 में देवशयनी एकादशी Devshayani Ekadashi, व्रत कब है। /एकादशी व्रत में क्या खाना चाहिए/ व्रत का पारण (Parana) कैसे करना चाहिए।
हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ शुक्ल एकादशी (Ashadhi Ekadashi) उदया तिथि के अनुसार 17 जुलाई को रखी जाएगी क्योंकि एकादशी तिथि 16 जुलाई को रात 8:33 पर आरंभ होगी। और इसका समापन 17 जुलाई रात को 9:02 पर होगा। अतः एकादशी का व्रत 17 जुलाई 2022 ( बुधवार) को ही रखा जाएगा । जो तिथि सूर्योदय के बाद लगती है उसे उदया अर्थात उदयात तिथि कहा जाता है।
एकादशी व्रत में क्या खाना चाहिए?
इस व्रत में अन्न को ग्रहण करना सर्वथा निषेध है। फलहार व दुध से यह व्रत करना सबसे उत्तम है। क्षमता अनुसार दो या तीन बार भी ले सकते हैं, उसमें कोई मनाही नहीं है। लेकिन अन्न ग्रहण न करें। एकादशी(ग्यारस) के दिन किसी भी प्रकार का अन्न और उसमें भी चावल का खाना बिल्कुल भी वर्जित है । यदि घर में कोई एकादशी का उपवास नहीं भी करता हो तो भी उस दिन घर में चावल घर का कोई भी सदस्य ना खाए।
फलहार में आप सभी प्रकार के फल, दूध, दही, दूध से बनी मिठाइयां, उपवास के दिन खाई जाने वाली चीजें जैसे साबूदाने की खिचड़ी, सिंघाड़े या राजगीरे के आटे की पुरी अथवा रोटी, आलू की सब्जी, मूंगफली, खोपरे की चटनी, हरी मिर्च हरा धनिया नमक इत्यादि सब खा सकते है। उपवास में प्याज लहसुन, बैंगन, मूली, टमाटर इत्यादि न खाए। सात्विक हरी सब्जी आलू लोकी कद्दू ककड़ी जैसी सब्जियों का उपयोग कर सकते है। संभव हो तो ये सब घी में पकाए। गाय का घी हो तो और बेहतर है। यदि न हो तो तेल में भी बना सकते है।
निर्जला एकादशी में पानी कब पीना चाहिए?
एकादशी व्रत श्री हरि विष्णु को समर्पित है । यह व्रत मोक्षदायी, पुण्य को बढ़ाने वाला व्रत है। इसके व्रत करने से व्यक्ति को जीवित रहते ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है । इस व्रत को करने से श्री हरि विष्णु की कृपा सहज ही प्राप्त हो जाती है।
साल में 24 एकादशी तिथि आती है इन 24 एकादशी में तीन एकादशी बड़ी मानी गई है और इनका महत्व भी बड़ा माना गया है । वह तीन एकादशी तिथि है ।
1. देवशयनी एकादशी
2. देव उठनी ग्यारस
3. डोल ग्यारस
एकादशी को ग्यारस भी कहा जाता है, क्योंकि दशमी तिथि के बाद यह ग्यारवी तिथि होती है।
देवशयनी एकादशी का महत्व बहुत अधिक है क्योंकि इस दिन से चातुर्मास प्रारंभ हो जाता है। देवी देवता शयन काल में चले जाते है। कहते हैं कि श्री हरि विष्णु क्षीरसागर निद्रा ध्यान में चले जाते हैं। इस चातुर्मास में कोई भी शुभ, मंगल कार्य विवाह आदि नहीं किए जाते हैं। चातुर्मास में श्रावण, भादो, कुआर और कार्तिक यह चार माह आते है। दीपावली के 10 दिन बाद प्रबोधिनी ग्यारस यानी कि देव उठनी ग्यारस से इस चातुर्मास की समाप्ति होती है ।
यह चातुर्मास श्रद्धापूर्वक आराधना, भक्ति, तप, साधना, ध्यान, भजन, भगवत पाठ के लिए सबसे समय श्रेष्ठ समय है। यह चारों महीने देवाधिदेव महादेव के परिवार से संबंधित है। सावन मास में भगवान शंकर, भादो मास में श्री गणेश जी, कुंवार महीने में माता पार्वती और कार्तिक मास में शंकर जी के पुत्र कार्तिकेय की पूजा आराधना होती है। भगवान शंकर का परिवार समस्त संसार में भक्तों की संकट से रक्षा करता है। जो साधु संत हवन यज्ञ तपस्या करते है, शंकर जी का परिवार उनकी हर विघ्न बाधा से रक्षा करता है, उनके सहायता करता है। ब्रह्माण्ड में प्रकृति की ये अद्भुत व्यवस्था रची गई है ।
इस एकादशी से व्रत रखकर कई व्यक्ति चतुर मास में कुछ नियम पालन करने हेतु संकल्प भी लेते है । अलग-अलग तरह से व्यक्ति अलग-अलग संकल्प लेते है कोई एक समय भोजन का संकल्प लेता है, कोई मंत्र जाप का संकल्प लेता है, कोई चार महीने एक ही प्रकार के अन्न को खाने की प्रतिज्ञा करता है। हमारे शास्त्रों में देवशयनी ग्यारस की बहुत महिमा बताई गई है।
देव शयनी एकादशी के दूसरे दिन प्रात काल द्वादशी तिथि को एकादशी का व्रत की पारण विधि पूरी कर लेना चाहिए। तभी इस व्रत का फल प्राप्त होता है। स्नान, ध्यान करके द्वादशी तिथि के पूर्व ही ब्राह्मण को दान करके भगवान का पूजन कर इस व्रत को छोड़ देना चाहिए। श्री विष्णु जी को तुलसी दल बहुत प्रिय है अतः मुंह में तुलसी का पत्ता लेकर इस वक्त का पारण करना चाहिए । आंवला भी विष्णु जी का प्रिय है अतः सबसे पहले आंवले को भी ग्रहण कर व्रत का पारण किया जा सकता है, इसको खाने से सुख समृद्धि और लक्ष्मी प्राप्त होती है। चुंकि एकादशी तिथि में चावल बिल्कुल निषेध है इसलिए पारण करते समय भोजन की थाली में चावल आवश्यक है । खाने में चावल अवश्य खाएं तभी एकादशी तिथि का व्रत संपूर्ण माना जाएगा। भोजन शुद्ध सात्विक ही करें।
एकादशी व्रत का पारण अगले दिन सूर्योदय के बाद किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना चाहिए। देवशयनी एकादशी का पारण 18 जुलाई को किया जाएगा। देवशयनी एकादशी का पारण का सही समय 18 जुलाई को सुबह 5 बजकर 35 मिनट से सुबह 8 बजकर 20 मिनट के बीच रहेगा। द्वादशी तिथि की समाप्ति 18 जुलाई को सुबह 8 बजकर 44 मिनट पर होगी।
देवशयनी एकादशी का महत्व
एकादशी व्रत श्री हरि विष्णु को समर्पित है । यह व्रत मोक्षदायी, पुण्य को बढ़ाने वाला व्रत है। इसके व्रत करने से व्यक्ति को जीवित रहते ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है । इस व्रत को करने से श्री हरि विष्णु की कृपा सहज ही प्राप्त हो जाती है।
साल में 24 एकादशी तिथि आती है इन 24 एकादशी में तीन एकादशी बड़ी मानी गई है और इनका महत्व भी बड़ा माना गया है । वह तीन एकादशी तिथि है ।
1. देवशयनी एकादशी
2. देव उठनी ग्यारस
3. डोल ग्यारस
एकादशी को ग्यारस भी कहा जाता है, क्योंकि दशमी तिथि के बाद यह ग्यारवी तिथि होती है।
देवशयनी एकादशी का महत्व बहुत अधिक है क्योंकि इस दिन से चातुर्मास प्रारंभ हो जाता है। देवी देवता शयन काल में चले जाते है। कहते हैं कि श्री हरि विष्णु क्षीरसागर निद्रा ध्यान में चले जाते हैं। इस चातुर्मास में कोई भी शुभ, मंगल कार्य विवाह आदि नहीं किए जाते हैं। चातुर्मास में श्रावण, भादो, कुआर और कार्तिक यह चार माह आते है। दीपावली के 10 दिन बाद प्रबोधिनी ग्यारस यानी कि देव उठनी ग्यारस से इस चातुर्मास की समाप्ति होती है ।
यह चातुर्मास श्रद्धापूर्वक आराधना, भक्ति, तप, साधना, ध्यान, भजन, भगवत पाठ के लिए सबसे समय श्रेष्ठ समय है। यह चारों महीने देवाधिदेव महादेव के परिवार से संबंधित है। सावन मास में भगवान शंकर, भादो मास में श्री गणेश जी, कुंवार महीने में माता पार्वती और कार्तिक मास में शंकर जी के पुत्र कार्तिकेय की पूजा आराधना होती है। भगवान शंकर का परिवार समस्त संसार में भक्तों की संकट से रक्षा करता है। जो साधु संत हवन यज्ञ तपस्या करते है, शंकर जी का परिवार उनकी हर विघ्न बाधा से रक्षा करता है, उनके सहायता करता है। ब्रह्माण्ड में प्रकृति की ये अद्भुत व्यवस्था रची गई है ।
इस एकादशी से व्रत रखकर कई व्यक्ति चतुर मास में कुछ नियम पालन करने हेतु संकल्प भी लेते है । अलग-अलग तरह से व्यक्ति अलग-अलग संकल्प लेते है कोई एक समय भोजन का संकल्प लेता है, कोई मंत्र जाप का संकल्प लेता है, कोई चार महीने एक ही प्रकार के अन्न को खाने की प्रतिज्ञा करता है। हमारे शास्त्रों में देवशयनी ग्यारस की बहुत महिमा बताई गई है।
देवशयनी एकादशी की पारण(व्रत तोड़ने की) विधि
देव शयनी एकादशी के दूसरे दिन प्रात काल द्वादशी तिथि को एकादशी का व्रत की पारण विधि पूरी कर लेना चाहिए। तभी इस व्रत का फल प्राप्त होता है। स्नान, ध्यान करके द्वादशी तिथि के पूर्व ही ब्राह्मण को दान करके भगवान का पूजन कर इस व्रत को छोड़ देना चाहिए। श्री विष्णु जी को तुलसी दल बहुत प्रिय है अतः मुंह में तुलसी का पत्ता लेकर इस वक्त का पारण करना चाहिए । आंवला भी विष्णु जी का प्रिय है अतः सबसे पहले आंवले को भी ग्रहण कर व्रत का पारण किया जा सकता है, इसको खाने से सुख समृद्धि और लक्ष्मी प्राप्त होती है। चुंकि एकादशी तिथि में चावल बिल्कुल निषेध है इसलिए पारण करते समय भोजन की थाली में चावल आवश्यक है । खाने में चावल अवश्य खाएं तभी एकादशी तिथि का व्रत संपूर्ण माना जाएगा। भोजन शुद्ध सात्विक ही करें।
एकादशी व्रत पारण का समय
एकादशी व्रत का पारण अगले दिन सूर्योदय के बाद किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना चाहिए। देवशयनी एकादशी का पारण 18 जुलाई को किया जाएगा। देवशयनी एकादशी का पारण का सही समय 18 जुलाई को सुबह 5 बजकर 35 मिनट से सुबह 8 बजकर 20 मिनट के बीच रहेगा। द्वादशी तिथि की समाप्ति 18 जुलाई को सुबह 8 बजकर 44 मिनट पर होगी।
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